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जन्म शताब्दी पर ‘बारादरी’ की महफ़िल में याद किए गए कृष्ण बिहारी नूर

इरफान आज़मी, गुलशन, मासूम, 'सहर', और 'नूर' ने पेश की विरासत की मिसाल

 

 

हमें विरासत में मिली है नूर साहब की गंगा-जमुनी तहजीब: डॉ. माला कपूर ‘गौहर’
विशेष संवाददाता
गाजियाबाद। गंगा-जमुनी तहजीब के पैरोकार शायर कृष्ण बिहारी नूर की 100वीं जयंती पर आयोजित ‘महफिल ए बारादरी’ में देश के शायर और कवियों ने उन्हें भाव पूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की। कार्यक्रम अध्यक्ष इरफान आज़मी ने कहा कि हमें संकल्प लेना चाहिए कि नूर साहब की विरासत को हम इस देश की नहीं दुनिया की पहचान के तौर पर स्थापित करें। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि नीना ‘सहर’ ने कहा कि आधुनिक शायरी में गंगा-जमुनी तहजीब को नूर साहब ने बुलंदियों पर पहुंचाने का काम किया। संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने कहा कि तहजीब के शहर लखनऊ से आए नूर साहब ने हिंदी उर्दू शायरी को एक अलग तहजीब दी।

 

नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित ‘बारादरी’ में संस्था की संस्थापिका डॉ. माला कपूर ‘गौहर’ ने कहा कि नूर साहब की काव्य और जीवन यात्रा भले ही लखनऊ से शुरू हुई लेकिन उसे विश्राम गाजियाबाद में मिला। हम इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि नूर साहब की गंगा-जमुनी तहजीब हमें विरासत में मिली है। जिसे संभाल कर रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।

 

 

उन्होंने अपने अशआर ‘किसी के ख्वाब के ख्वाबों में ढ़ल के देखा जाए, खुले जो आंख तो तुम्हें आंख मल के देखा जाए। हमारे पंख नहीं हैं सो उड़ नहीं सकते, सो आसमान में इक दिन उछल कर देखा जाए’ पर खूब दाद बटोरी। संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने कहा ‘पलकों की ओट में वो छुपा ले गया मुझे, यानी नजर नजर से बचा ले गया मुझे’। मुख्य अतिथि नीना ‘सहर’ ने कहा कि बारादरी ने काव्य के क्षेत्र में वह मुकाम हासिल किया है, जहां देश का हर रचनाकार अपना कलाम पेश करने में फख्र महसूस करता है। उन्होंने अपने शेर ‘जो हममें है वो नहीं है हमारे बच्चों में, रवायतें हैं बुजुर्गों की आखिरी हम लोग’ पर खूब दाद बटोरी। इरफान आज़मी के दोहे और शेर भरपूर सराहे गए। उन्होंने कहा ‘साजन की छवि देख कर अपनाया बैराग, मैं साजन में लीन हूं साजन मेरा भाग’।

 

तरुणा मिश्रा ने संचालन पर दाद बटोरने के साथ साथ अपने शेरों ‘अभी तो घर मेरा पूरी तरह जला भी नहीं, जो हाथ सेंक रहे थे वो उठ के जाने लगे। मेरा ख़मीर कोई शक्ल इख़्तियार करे, मेरे वजूद की मिट्टी कहीं ठिकाने लगे’ पर भी वाहवाही बटोरी। मासूम गाजियाबादी ने फरमाया ‘यहां पर मजहबी रंजिश मिलती हैं विरासत में, यहां लाशों को राहत में कफन तकसीम होते हैं’। शायर सुरेंद्र सिंघल ने अपनी नज़्म ‘छत बिना मुंडेर की है’ और अपने शेरों से महफ़िल लूट ली। कार्यक्रम में डॉ. सुधीर त्यागी को ‘बारादरी जीवन पर्यन्त साहित्य सृजन सम्मान’ से अलंकृत किया गया। कार्यक्रम के संयोजक आलोक यात्री ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया।

 

 

खुर्रम ‘नूर’, जगदीश पंकज, बी. के. वर्मा ‘शैदी’, सुधा गोयल, वेद प्रकाश ‘वेद’, वी. के. शेखर, रवि पाराशर, विपिन जैन, डॉ. तारा गुप्ता, अनिमेष शर्मा ‘आतिश’, ईश्वर सिंह तेवतिया, ताबिश ख़ैराबादी, असलम राशिद, डॉ. रणवीर सिंह परमार, इंद्रजीत सुकुमार, सुधा गोयल, संजीव शर्मा, संजीव निगम ‘अनाम’, प्रदीप भट्ट, डॉ. नरेंद्र शर्मा, शोभना श्याम, डॉ. राजेश श्रीवास्तव ‘राज’, सोनम यादव, मनीषा जोशी, दीपक कुमार श्रीवास्तव ‘नीलपद्म’, उषा श्रीवास्तव, विनोद तोमर, विनय विक्रम सिंह, पवन कुमार तोमर, विवेक वशिष्ठ, तूलिका सेठ, कपिल खंडेलवाल, की रचनाएं भी भरपूर सराही गईं।
इस अवसर पर डॉ. स्मिता सिंह, पंडित सत्यनारायण शर्मा, राधा रमण, मोनी गोपाल ‘तपिश’, डॉ. संजय जैन, डॉ. उर्वी उदल, डॉ. सुमन गोयल, राष्ट्र वर्धन अरोड़ा, वागीश शर्मा, हेम कृष्ण जोशी, राकेश मिश्रा, वीरेंद्र कुमार राठौर, शकील अहमद सैफ, अक्षयवर नाथ श्रीवास्तव, शरवत उस्मानी, उत्कर्ष गर्ग, आशीष मित्तल और शशिकांत भारद्वाज सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।

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