
कोरोनावायरस के संक्रमण और बीमारी से निपटने के लिए सरकार ने इसे महामारी घोषित कर महामारी अधिनियम को लागू कर दिया था। महामारी अधिनियम में सरकार को अनेक आपातकालीन अधिकार हासिल हैं। इन आपातकालीन अधिकारों में सबसे अधिक अधिकार उन्हें मिले हैं जिन्हें कोरोना वारियर्स कहा जा रहा है। इन वारियर्स स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग के अधिकारी व कर्मचारी पुलिसकर्मी और सफाई कर्मी शामिल हैं। सफाई कर्मियों की बात छोड़ दी जाए तो बाकी दोनों तरह के कोरोना योद्धा कई बार अपनी मनमानी पर उतर आते हैं। प्रदेश के गृह सचिव अवनीश अवस्थी ने रविवार को लाकडाउन कहने के बजाय इसे साप्ताहिक बंदी का नाम दिया है। रविवार को पुलिसकर्मी डंडा उठाकर इस तरह घूमते हैं मानो कोई दुकान खुली मिल जाए तो उसको अपना निशाना बना ले। ऐसी ही स्थिति स्वास्थ्य व चिकित्सा विभाग की है। मेरठ के मेडिकल कॉलेज में कोरोना संक्रमण से हुई दो लोगों की मौत के बाद जब उनके शव परिजनों को सौंपे गए तो मोदीनगर की हरमुख पुरी कॉलोनी का एक युवक अपने मृतक पिता का मुंह देखने का लोभ नहीं छोड़ पाया। जिस प्लास्टिक बैग में शव बंद था उसकी चेन खोलते ही उनके होश उड़ गए क्योंकि उस बैग में उनके पिता के स्थान पर किसी और का शव था। उन्होंने जब मेडिकल कॉलेज को फोन किया तब वहां के कर्मचारियों ने अपनी गलती मानने के बजाय उल्टा उन्हें ही यह कहकर धमकाना शुरू कर दिया कि तुम्हारे खिलाफ मुकदमा दर्ज होगा तुमने महामारी अधिनियम का उल्लंघन किया है। बात जब वरिष्ठ अधिकारियों को तक पहुंची तब उन लोगों को बुलाया गया जिन्हें दूसरा शव सौंपा गया था। पता चला वे कल शाम ही उसका संस्कार कर चुके थे। उन्हें दोबारा अपने परिजन का संस्कार करना पड़ा जबकि मोदीनगर के परिवार को उनके बुजुर्ग का शव भी नहीं मिल सका। उन्हें अब भी महामारी अधिनियम का मुकदमा दर्ज करने की धमकी दी जा रही है। माना कि स्वास्थ्य और चिकित्सा विभाग के कर्मचारी कोरोना महामारी से निपटने के लिए लगातार काम कर रहे हैं लेकिन जिनके परिवार का कोई व्यक्ति मौत के आगोश में चला जाता है उसके प्रति मानवता और संवेदना का बर्ताव किया जाना जरूरी है। स्वास्थ्य वे चिकित्सा विभाग के कर्मचारी और पुलिसकर्मी इस मानवता और संवेदना को ही भुला बैठते हैं। यह स्थिति पीड़ा जनक है जिसे दूर किया जाना जरूरी है।