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चुनाव परिणाम के बाद एक बार फिर दलबदल का दौर

गाजियाबाद। विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही पूरी चुनावी प्रक्रिया के दौरान दलबदल का दौर लगातार चलता रहा था। 10 मार्च को मतगणना के बाद एक बार फिर इस बात की संभावना है कि राजनीतिक दलों में निष्ठा बदलने का दौर एक बार फिर शुरू हो सकता है।
विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के साथ ही जिले में बड़े पैमाने पर दलबदल का दौर चला था जो मतदान तक लगातार चलता रहा। दल बदल से सबसे अधिक प्रभावित बहुजन समाज पार्टी रही जिसके कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़कर माला बदल गए। बसपा से पाला बदलने वालों में कोऑर्डिनेटर के पद पर रहे कमल जाटव ने रालोद का दामन थामा जिन्हें हाल ही में रालोद ने अपनी अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ में प्रदेश महासचिव का पद दिया है। इसके अलावा काफी पहले महानगर अध्यक्ष रहे लक्ष्मण जाटव और उनके साथियों ने भी बसपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया। बसपा छोड़कर सपा में जाने वालों में पूर्व जिला अध्यक्ष रामप्रसाद प्रधान भी शामिल रहे हैं। यह अलग बात है कि चुनाव में उनकी किसी भी तरह की भूमिका कहीं दिखाई नहीं दी।
बसपा के अलावा कांग्रेस के भी कई छोटे-बड़े नेताओं ने पाला बदल लिया। जिला महासचिव के पद पर रहे मुराद नगर निवासी अलीमुद्दीन कस्सार, महिला कांग्रेस की जिला अध्यक्ष रही पार्षद माया देवी, पीसीसी सदस्य रहने के अलावा अन्य कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे त्रिलोक सिंह और उनके साथियों ने समाजवादी पार्टी की शरण ले ली। कांग्रेश और सपा छोड़कर कुछ लोगों ने सत्तारूढ़ दल भाजपा का दामन भी थामा है। यह अलग बात है कि दलबदल करने वाले नेताओं की बदौलत चुनाव किसी भी स्तर पर प्रभावित होता दिखाई नहीं दिया।
10 मार्च को होने जा रही मतगणना के बाद जिले में एक बार फिर दलबदल का दौर शुरू हो सकता है। यह बात चुनाव परिणाम पर काफी निर्भर करेगी। कई नेताओं ने नगर निगम और नगर पालिकाओं के चुनावों को ध्यान में रखकर दलबदल किया है। वर्तमान स्थिति यह है कि जिले की पांचों विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है। चुनाव परिणाम यदि इस स्थिति में फेरबदल करता है तो कई लोग अपने वर्तमान दलों को छोड़कर दूसरे दलों में जा सकते हैं। चुनाव परिणाम के बाद सरकार किसकी बनती है यह भी राजनीतिक दलों में होने वाले फेरबदल को काफी हद तक प्रभावित करेगा।
नगर निगम में पार्षद, पालिकाओं में सभासद का चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों ने अभी से जोड़-तोड़ शुरू कर दी है।