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कैडर वोट में भी मायावती की जनसभा को लेकर उत्साह नहीं
चुनाव आयोग के निर्देश बचा रहे हैं पदाधिकारियों की जान

गाजियाबाद। बसपा प्रमुख मायावती की कल गाजियाबाद में हो रही जनसभा को लेकर कैडर वोट में भी पहले जैसा उत्साह नजर नहीं आ रहा है। बसपा प्रत्याशी और पदाधिकारी ऋण चुकाने में नाकाम दिखाई दे रहे हैं लेकिन चुनाव आयोग के निर्देश की आड़ लेकर पदाधिकारियों की जान बच रही है।
जिले की पांचों सीटों पर इस बार बहुजन समाज पार्टी के पास गाजियाबाद को छोड़कर किसी भी सीट पर दमदार उम्मीदवार नहीं था। गाजियाबाद सीट पर भी सुरेश बंसल कोरोना संक्रमण के कारण चुनाव से पीछे हट गए थे जिसके बाद पार्टी ने संघ पृष्ठभूमि के केके शुक्ला को उम्मीदवार बनाया। के के शुक्ला की स्थिति यह है कि बसपा के कैडर वोट तक वे अपनी पकड़ बनाने में अभी तक नाकाम साबित हो रहे हैं।
मुरादनगर और लोनी में बसपा ने एकदम अनजान चेहरों को मैदान में उतारा है। मुरादनगर में हाजी अयूब और लोनी में पावी गांव के रहने वाले आकिल बसपा प्रत्याशी हैं जो आज तक भी खुद की पहचान साबित करने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं।
साहिबाबाद सीट से बसपा ने पूर्व में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रहे अजीत कुमार पाल को टिकट दिया है। अजीत कुमार पाल पिछले लंबे समय से निष्क्रिय थे। इसके अलावा साहिबाबाद क्षेत्र के कई प्रमुख बसपा नेता चुनाव के दौरान पार्टी को छोड़कर चले गए। वर्तमान हालत यह है कि अजीत कुमार पाल पूरे विधानसभा क्षेत्र में पहुंचने में भी असफल हो रहे है।
मोदीनगर विधानसभा क्षेत्र से डॉक्टर पूनम गर्ग काफी समय से बसपा से जो भी है लेकिन वे चुनाव के समय ही सक्रिय होती है बाकी समय उनका पार्टी से कोई संबंध दिखाई नहीं देता। उनकी यही निष्क्रियता अब चुनाव में उनके आड़े आ रही है।
बसपा के नेता ही कह रहे हैं कि बसपा प्रमुख मायावती की कल होने जा रही जनसभा भी चुनाव में कोई खास जान डालने में कामयाब नहीं होगी। मायावती की जनसभा में जिस तरह भारी भीड़ उमड़ती थी उस तरह का उत्साह अब पार्टी के कैडर वोट में भी दिखाई नहीं देता। पार्टी के पदाधिकारियों का आम जनता से दूरी बनाकर रहना उनके लिए अब काफी मुश्किल साबित हो रहा है। इन सब बातों को देखते हुए पदाधिकारियों ने चुनाव आयोग के निर्देशों के मद्देनजर राहत की सांस ली है। मायावती की जनसभा के लिए केवल एक हजार कुर्सियां लगाई जा रही है।
बसपा कार्यकर्ता ही यह बात कह रहे हैं कि चुनाव आयोग के निर्देशों की आड़ में पार्टी के पदाधिकारियों की जान बच गई है वरना इस बार मायावती की जनसभा भी काफी फीकी साबित होती।